बुधवार, मार्च 20, 2013

चिडिया-----


फुदक फुदक
आँगन में आकर
सामूहिक चहचहाती 
अन्नपूर्णा का भजन सुनाती
दाना चुगती
फुर्र हो जाती---

धूप चटकती तब
तिनके तिनके जोड़ जोड़ कर
घर के कोने में 
घोंसला बनाती
जन्मती
नन्ही चहचहाहट
देखकर आईने में
चोंच मारती
थक जाती तो
फुर्र हो जाती-----

समझ गयी जब से तुम
आँगन आँगन
जाल बिछे हैं
हर घर में
हथियार रखे हैं
फुदक फुदक कर
अब नहीं आती
टुकुर मुकुर बस देखा करती
फुर्र हो जाती------

एक निवेदन चिड़िया रानी
लौट आओ अब
घर आँगन
नये सिरे से
खोलो द्वार
चहको और चहकाओ-------

"ज्योति खरे"       

 

18 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर कविता ...बनी रहे गौरैया की चहक

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

एक निवेदन चिड़िया रानी
लौट आओ अब
घर आँगन
नये सिरे से
खोलो द्वार
चहको और चहकाओ----
सुने दर ओ दिवार को गुलज़ार करो
सादर !!

राहुल ने कहा…

लौट आओ अब
घर आँगन
नये सिरे से
खोलो द्वार
चहको और चहकाओ--
-----------------
चिड़ियों को बचाने की जद्दोजहद घर में भी घर से बाहर भी ....

बेहतरीन पोस्ट ...

sourabh sharma ने कहा…

आपकी कविता फूल बेचने वाली लड़की के जज्बातों से छोटी सी चिड़िया तक बहुत विस्तृत आयाम छूती है और हेडर पर पड़ा पतझड़ में गिरे पत्ते को देखकर अजीब सा विषाद दिल को छू जाता है लेकिन उम्मीद तो हरी है आपकी सकारात्मकता इसे नये अर्थ दे जाती है।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

चिड़ियों की चहक खो गई है. मन तो बहुत चाहता है रुकी रहे पर वातावरण विरोधी है. आरज़ू है...

लौट आओ अब
घर आँगन
नये सिरे से
खोलो द्वार

बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

संध्या शर्मा ने कहा…

बिन गौरैया घर - आँगन सूना... लौट आओ गौरैया...बहुत सुन्दर रचना, बधाई...

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

बहुत सुन्‍दर।

Saras ने कहा…

एक निवेदन चिड़िया रानी
लौट आओ अब
घर आँगन
नये सिरे से
खोलो द्वार
चहको और चहकाओ-------इस विलुप्त होती हुई छोटीसी ख़ुशी को बचाना होगा ..चाहे जैसे ...!!!

Swapnil Shukla ने कहा…

very nice lines ...kudos!!!!

plz . visit http://swapnilsaundarya.blogspot.in/2013/03/blog-post_21.html

Jyoti khare ने कहा…

आप सभी मित्रों का बहुत बहुत आभार

सुज्ञ ने कहा…

अतिसुंदर भाव युक्त आह्वान!!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

गौरैया पर बहुत ही लालित्यपूर्ण रचना...

खपरे-वाले घर में मेरा
रहा घोंसला कभी चितेरा
छप्पर उजड़ी,
सबकुछ उजड़ा
कंकरीट - वन देख दूर से
फुर्र हो जाती---

Alpana Verma ने कहा…

सुन्दर रचना और चित्र भी .
यहाँ हम गौरैया देख पाते हैं रोज़..

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्‍दर।
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Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर...

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

प्रभावी अभिव्यक्ति .......

Aditi Poonam ने कहा…

बहुत सुंदर रचना ,
साभार....

HARSHVARDHAN ने कहा…

सुन्दर कविता लिखी है आपने मैं आशा करता हूँ की गौरैया सदा ही ऐसे चूँ-चूँ करती रहे। आभार :)

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