गुरुवार, अक्तूबर 05, 2023

हम चित्रकार हैं

हम चित्रकार हैं
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रौशनियों की चकाचौंध में
चमचमाता कैनवास
उल्लास से ब्रश में भरे रंग
उत्साह में डूबा कलाकार
अचानक
अंधाधुंध भागते पैरो के तले
कुचल दिया जाता है 

ऐसा क्या हो जाता है कि 
भीड़ अपनी पहचान मिटाती
भगदड़ में बदल जाती है
और समूचा वातावरण
मासूम,लाचार और द्रवित हो जाता है

यह समय कुछ अजीब सा है
जो प्रकृति के कलाकार
की बनायी चित्रकला को
मिटाने में तुला है

सूख रहीं हैं नदियां
और अधनंगा प्यासा पानी
कोलतार की सड़कों में घूम रहा है
मछलियां किनारों पर आकर
फड़फड़ा रही हैं
जंगल पतझड़ की बाहों में कैद हैं
होने लगा है आसमान में छेद

कैनवास पर अधबनी स्त्री की खूबसूरत देह से
सरकने लगा है आवरण 
चीख रही है स्त्री की छवि
कह रही है
मैं निर्वस्त्र नहीं होना चाहती हूं
कलाकार की लंबी उंगलियां
सिकुड़ने लगी हैं
और वह 
आर्ट गैलरियों की अंधी गुफा में कैद कर लिया गया है

हादसों की यह कहानी 
कौन गढ़ रहा है
यह हमारी तलाश से परे है
इनकी खामोश भूमिका
जीवन मूल्यों के टकराव का
शंखनाद करती हैं 

हम आसमान को गिरते समय 
टेका लगाकर
धराशायी होने से बचाने वाले
और हादसों के घाव से रिस रहे
खून को पोंछने वाले
सृजनात्मक परिवार के सदस्य हैं

हम चित्रकार हैं
प्रकृति को नये सिरे से गढ़ेंगे
स्त्री की देह को नहीं
उसके  मनोभावों को उकेरेंगे----

◆ज्योति खरे