इस धरती पर
कुछ नया
कुछ और नया होना चाहिये-----
चाहिये
अल्हड़पन सी दीवानगी
जीवन का
मनोहारी संगीत
अपनेपन का गीत-----
चाहिये
सुगन्धित हवाओं का बहना
फूलों का गहना
ओस की बूंदों को गूंथना
कोहरे को छू कर देखना
चिड़ियों सा चहचहाना
कुछ कहना
कुछ बतियाना------
इस धरती पर
कितना कुछ है
गाँव,खेत,खलियान
जंगल की मस्ती
नदी की दौड़
आंसुओं की वजह
प्रेम का परिचय
इन सब में कहीं
कुछ और नया होना चाहिये
होना तो कुछ चाहिये-----
चाहिये
किताबों,शब्दों से जुडे लोग
बूढों में बचपना
सुंदर लड़कियां ही नहीं
चाहिये
पोपले मुंह वाली वृद्धाओं में
खनकदार हंसी------
नहीं चाहिये
परचित पुराने रंग
पुराना कैनवास
कुछ और नया होना चाहिये
होना तो कुछ चाहिये---------
"ज्योति खरे"