तूफानो को
पतवार से बांध दिया है
बहसों, बेतुके सवालों
कपटपन और गुटबाजी की
राई, नून, लाल मिर्च से
नजर उतारकर
शाम के धुंधलके में
जला दिया है
कलह, किलकिल और
संघर्षो को
पुटरिया में लपेटकर
बूढ़े नीम पर
टांग दिया है
बांध लिया है
बरगद की छांव में
बटोर कर रखे
तिनका तिनका
सुखों का झूला
दोस्तो मेरे पास आओ
खट्टी- मीठी
तीखी- चिरपरी
स्मृतियों को झुलायेंगे
थोड़ा सा रो लेंगे
थोड़ा सा हंस लेँगे---
"ज्योति खरे"