आजाद सांसें
आज यही सांसें
सबसे मासूम
पागल कोख से जन्मी
पागल आजादी चढ़ती, उतरती
नजरों से बचती
सड़कों पर घूम रही है
लावारिस,अशांत
किसी दुत्कारे जानवर की तरह
समय की काली रेत पर
आजादी को
आजादी को
नोंचने,खसोटने
अपनी बांहों में भरने की होड़ में
खोखले आचरण
खोखली औपचारिकता
खोखले संबंधों को
उढ़ा रहें हैं
केशरिया,सफेद,हरा
समय की रेत पर
सफर का पहला कदम रखने से पहले
यह तय करना होगा
सड़कों पर भटकती
लावारिस आजादी को
घर लाना है ------
सड़कों पर भटकती
लावारिस आजादी को
घर लाना है ------
"ज्योति खरे"