ओ मेरी सुबह
सींच देती हो जड़ें
बहने लगती हो धमनियों में
कर देती हो फूलों के रंग चटक
पोंछ देती हो
एक-एक पत्तियां-------
आईने की तरह
चमकने लगती है नदी
पहाड़ गोरा हो जाता है
निकल पड़ते हैं पंछी
दाना चुगने--------
ओ मेरी सुबह
पहुंच जाती हो
घर-घर
बिखेर देती हो उदारता से
शुभदिन की कामनायें------
ओ मेरी सुबह
कहां से लाती हो
इतना उजलापन--------
"ज्योति खरे"