आम आदमी
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अपने आप से
जूझता
छली जा रही
घटनाओं से बचता
घिसट रहा है
कचरे से भरे बोरे की तरह
समय की तपती
काली जमीन पर
वह
आसमान में टंगे
सूरज को
देखकर भी डर जाता है
कि,कहीं टूटकर
उसके ऊपर न गिर पड़े
दिनभर की थकान
पसीने में लिपटी दहशत
और अधमरे सपनों को
खाली जेब में रखे
लौट आता है
घर
गुमशुदा लोगों की सूची में
अपना नाम ढूंढकर--
◆ज्योति खरे◆