पापा अब
केवल बातें करते हैं सपनों में-------
मौन साधना साधे अम्मा
मंदिर जाती सुबह सुबह
आँगन की उधड़ी यादों को
लीपा करती जगह जगह
पापा अब
दिखते सिर्फ अलबम के पन्नों में-------
सूख रहे गमले के पौधे
मांग रहे पानी पानी
अंधियारे में आंख ढूढ़ती
आले की सुरमेदानी
पापा अब
बूंद आँख की बदली झरनों में--------
उथले जीवन के बहाव में
डूब गयी रिश्तों की कश्ती
घर के भीतर बसती जाती
अलग हुये चूल्हों की बस्ती
पापा अब
नहीं रहा अपनापन अपनों में
पापा से
हमने कल बातें की सपनों में---------
"ज्योति खरे"
चित्र--
"पापा" एल्बम के पन्ने से