समर्थक परजीवी हो रहें हैं
सड़क पर कोलाहल बो रहें हैं----
जश्न में डूबा समय अब मौन है
थैलियां आश्वासन की खो रहें हैं----
चौखटों के पांव पड़ते थक गऐ
भदरंगे बेहरूपिये सो रहें हैं----
घाट पर धुलने गई है व्यवस्था
आँख से बलात्कार हो रहें हैं----
"ज्योति खरे"