प्रेम से परिचय
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धूल और धुंध के
थपेड़ों से बचती
किसी सुनसान
जगह पर बैठकर
खोलकर स्मृतियों की गठरी
देखना चाहती हूं
पुराने परिचित खूबसूरत दिन
जब उन दिनों
धूप में चेहरा नहीं ढांकती थी
ठंड में स्वेटर नहीं पहनती थी
भींगने से बचने
बरसात में छाता नहीं ले जाती थी
यह वे दिन थे,जब
वह छुप कर देखता भर नहीं था
भेजता था कागज में लिखकर सपनें
जिन्हें देखकर
मैं जीती रहूं
उन दिनों,मैं
अल्हड़पन के नखरों में डूबी
इतराया करती थी
मचलकर गिर जाया करती थी
पिघलती मोम की तरह
प्रेम के जादुई करिश्में से
अपरचित थी
एक दिन उस अजनबी ने कहा
मैं,तुम्हारा
प्रेम से परिचय करवाना चाहता हूं
मजनूं की दीवानगी
और फ़रहाद की आवारगी से
मिलवाना चाहता हूं
वह कहता रहा
तुममें लैला का दिल है
शीरी का मन है
और तुम्हारे पास
प्रेम करने की अदाएं भी
उन्हीं जैसी हैं
वह चला गया
फिर कभी नहीं लौटा नहीं
मैं आज तक
उस दीवाने का
उस आवारा का
इंतजार कर रहीं हूँ
जिसमें मजनू जैसा दिल हो
फ़रहाद जैसा मन हो
मुझे मालूम है
प्रेम के वास्तविक रंगों से
परिचय करवाने
वह अजनबी जरूर आएगा
जब तक
इंतजार के खूबसूरत
दिनों में
खुद को संवार लेती हूं----
"ज्योति खरे"