रविवार, मार्च 21, 2021

मैं टेसू हूं

टेसू 
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काटने की मुहिम की
पहली कुल्हाड़ी
गर्दन पर पड़ते ही
मैं कटने की 
बैचेनियों को समेटकर
फिर से हरा होकर
देता हूं चटक फूलों को 
जन्म 
गर्म हवाओं से 
जूझने की ताकत 

सूख रहीं डगालों से गिरकर
चूमता हूं
उस जमीन को 
जिस पर में अंकुरित हुआ
और पेड़ बनने की
जिद में बढ़ता रहा
इसमें शामिल है
अपने रुतबे को बचाए रखना

फागुन में
पी कर 
महुए की दो घूंट 
बेधड़क झूमता,घूमता हूं
बस्तियों में
छिड़कता हूं
पक्के रंग का उन्माद

मेरी देह से तोड़कर
हरे पत्तों से
बनाएं जाते हैं दोना-पत्तल 
जिन्हें बाजार में बेचकर
गरीबों का घर चलता है

मेरे हरे रहने का यही राज है---

"ज्योति खरे"