नंगी प्रजातियों की नंगी जबान
थूककर गुटक रहें अपने बयान-
फेंक रहे लपेटकर मुफ्त आश्वासन
मनभावन मुद्दों की खुली है दुकान----
देश को लूटने की हो रही साजिश
बैठे गये हैं बंदर बनाकर मचान--
उधेड़ दो चेहरों से मखमली खाल
चितकबरे चेहरे बने न महान--
पी गये चचोरकर सारी व्यवस्थायें
सूख गए खेत खलियान और बगान--
"ज्योति खरे"