तुम्हे देखने की जिद में
जोड़ता रहा कांच के टुकड़े
पागलों की भीड़ में
एक और पागल जुड़ गया-------
लेकर चले थे मशाल
मुट्ठी में रखने मंजिल
सिसकियां रोकने घर की
जुलूस उस तरफ मुड़ गया-------
बो रहे हैं फुटपात पर
प्रेम की संभावना
फल पेड़ पर फला
चौराहों पर निचुड़ गया--------
रखा था खरीदकर अपनों को
मंहगी अलमारी में
जरुरत पर खोलकर देखा
सूख कर सिकुड़ गया--------
"ज्योति खरे"
जोड़ता रहा कांच के टुकड़े
पागलों की भीड़ में
एक और पागल जुड़ गया-------
लेकर चले थे मशाल
मुट्ठी में रखने मंजिल
सिसकियां रोकने घर की
जुलूस उस तरफ मुड़ गया-------
बो रहे हैं फुटपात पर
प्रेम की संभावना
फल पेड़ पर फला
चौराहों पर निचुड़ गया--------
रखा था खरीदकर अपनों को
मंहगी अलमारी में
जरुरत पर खोलकर देखा
सूख कर सिकुड़ गया--------
"ज्योति खरे"