गुरुवार, अक्तूबर 05, 2017

शरद का चांद

शरद का चांद
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वर्षों से सम्हाले
प्रेम के खुरदुरेपन को
खरोंच डाला है
सपनों ने
दीवाल पर चिपका रखी हैं
खींचकर अनगिनत फ़ोटो
चांद की
और चांद है कि
आसमान से उतरकर
खरगोश की तरह
उचक रहा है इधर उधर

फक्क सुफेद चांद
जब भी उछलकर
तुम्हारी गोद में गया
तुमने झिड़क दिया

मैं हमेशा जमीन पर
उचकते खरगोश को सहलाता रहा
खरोंच और चोट से बचाता रहा
और समझाता रहा तुम्हें
यह खरगोश प्रेम का प्रतीक है
तुम नकारती रही
तुम्हें तो बस आसमान वाला
चांद चाहिए

कभी
जमीन पर रहने वाले चांद को
गोद में बैठाकर
प्रेम से
उसकी देह पर
उंगलियां तो फेरो

शरद का चांद
प्रेम में तरबतर हो जाएगा
तुम्हारे आँचल में
सदैव खिला रहेगा -----

"ज्योति खरे"