प्रेम के गणित में
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गांव के
इकलौते
तालाब के किनारे बैठकर
जब तुम मेरा नाम लेकर
फेंकते थे कंकड़
पानी की हिलोरों के संग
डूब जाया करती थी
मैं
बहुत गहरे तक
तुम्हारे साथ
तुम्हारे भीतर ----
सहेजकर रखे
खतों को पढ़कर
हिसाब-किताब करते समय
कहते थे
तुम्हारी तरह
चंदन से महकते हैं
तुम्हारे शब्द ----
आज जब
यथार्थ की जमीन पर
ध्यान की मुद्रा में
बैठती हूं तो
शून्य में
लापता हो जाते हैं
प्रेम के सारे अहसास
प्रेम के गणित में
कितने कमजोर थे
अपन दोनों ----
"ज्योति खरे"
33 टिप्पणियां:
आह ... ज्योति जी ... गज़ब ही लिखा है ... भीतर तक डूबना ,,, चन्दन जैसा महकना कितने प्यारे एहसास ...
और यथार्थ में कहाँ ला कर ख़त्म की अपनी बात कि प्रेम का गणित समझ नहीं पाए ...
गहन अनुभूति से लिखी रचना ...
आभार आपका
ब्शुत खूब आदरणीय सर | आपकी रचनाएँ अनोखी और उनमें प्रेम की अभिव्यक्ति भी अद्भुत | अबोध प्रेम जब यथार्थ के धरातल पर पटक कर गिरता होगा तो कदाचित यही आह निकलती होगी भीतर से --
प्रेम के गणित में
कितने कमजोर थे
अपन दोनों ----
बहुत ही मार्मिक रचना जो बताती है किताबी गणित से प्रेम का गणित बहुत मुश्किल है -- |
आपकी लिखी कोई रचना सोमवार 5 अप्रैल 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 05-04 -2021 ) को 'गिरना ज़रूरी नहीं,सोचें सभी' (चर्चा अंक-4027) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर् और सशक्त रचना।
बहुत ही सुंदर सृजन।
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।
बहुत सुंदर और यथार्थपरक रचना। प्रेम की इंद्रधनुषी कल्पनाओं से बाहर आते ही जब वास्तविकता के कठोर तप्त धरातल पर कदम पड़ते हैं तो मन जलकर यही कह उठता है -
प्रेम के गणित में
कितने कमजोर थे
अपन दोनों ----
प्रेम में आकंठ डूबे मन को हिसाब किताब कहाँ.समझ आता है।
बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
प्रणाम।
सादर।
वाह ज्योति जी, क्या खूब लिखा....सहेजकर रखे
खतों को पढ़कर
हिसाब-किताब करते समय
कहते थे
तुम्हारी तरह
चंदन से महकते हैं
तुम्हारे शब्द ----ये शब्द ही तो हैं जो... बहुत खूब
बहुत सुंदरता से प्रेम,पर के अहसास और प्रेम की परिणति का वर्णन,एक एक शब्द अंदर तक समाहित हो गया , सुंदर सृजन ।
अनछुई अनुभूति । बहुत ही सुन्दर ।
प्रेम की गहराई में आकंठ डूबी अभिव्यक्ति, बहुत ही सुंदर
वाह 👌
वाह 👌
वाह 👌
वाह 👌
लाजवाब रचना आदरणीय ज्योति खरे सर। कभी-कभी आप उत्कृष्टता के शिखर पर होते हैं, यह वही क्षण है।
बहुत सुंदर सृजन एहसास जो यूं बदलते हैं वाह।
लाजवाब रचना,पूरी रचना ही खूबसूरत है, ढेरों बधाई हो सादर नमन
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
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