शुक्रवार, मार्च 29, 2019

आई पी एल और बच्चे

खेल तो हम कभी भी खेल लेंगे
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जीत और हार की संभावनाओं के साथ
पान पराग, विमल, राजश्री, के पाऊच और गोल्डफ्लेग सिगरेट के पैकेट लिए
जहां चाय सुलभता से मिल जाए
इसकी चुस्कियों लेने
अपने अपने अड्डों पर
विराजमान हो जाते हैं
सभ्य समाज के
सभ्य लोग

ऐसी जगहों पर
मासूम बच्चे
टेबल पर पोंछा मारते
खाली कप ग्लास उठाते
अक्सर मिल जाते हैं--

इन दिनों
आई पी एल का क्रेज है
यह माँ बाप और रिश्तों को भी
नहीं समझता है

यहीं पर
मासूम बच्चे
गिरते विकटों के साथ
चौके, छक्कों के साथ
खाते रहते हैं
मां-बहन की गालियां
और अपनी मासूमियत
का परिचय देते
पेट भरने के इंतजाम में
पोंछते रहते हैं टेबल
खाली करते रहते हैं
एशट्रे

समय मिलते ही
कनखियों से
स्क्रीन पर देखती मासूम आंखे
बल्ले और बाल पर नहीं
चिप्स,चॉकलेट,मैगी,कामप्लेन 
पर ठहर जाती हैं
बालमन के भीतर
घुटती
भविष्य की संभावनाओं को
मां बहन की गालियां
भिंगो जाती हैं

हार और जीत की
जश्न की
तैयारियों में लगे लोग
मेकडावल, रॉयलचेलेंज, टीचर,सिग्नेचर
प्लेन,मसाला के
इंतजाम के साथ
पंडाल में बैठकर
असफलता, सफलता का राग
दो घूंट चढ़ाने के बाद
गुनगुनाने लगते हैं
टेबल पोंछते बच्चों की
मासूम घुटन को
नहीं पहचानते
मां बहन की गालियों देकर
इन्हें अपना यार समझते हैं

टेबल पोंछते इन बच्चों की
मासुमियत को समझने
कोई भी राष्ट्रीय प्रतियोगता
नहीं होती

खेेल तो हम कभी भी खेल लेंगे
पहले
इन मासूम बच्चों की
मासूमियत को
चौके,छ्क्के में
तबदील करें

मासूम जीवन को जीतने का
खेल
जल्दी से
प्रारंभ करवाओ
इस खेल में
आम आदमी
सम्मलित होना चाहता है--

"ज्योति खरे"

सोमवार, मार्च 18, 2019

छेवला उर्फ टेसू

फागुन की
समेटकर बैचेनियां
दहक रहा टेसू
महुये की
दो घूंट पीकर
बहक रहा टेसू---

सुर्ख सूरज को
चिढ़ाता खिलखिलाता
प्रेम की दीवानगी का
रूतबा बताता
चूमकर धरती का माथा
चमक रहा टेसू---

गुटक कर भांग का गोला
झूमता मस्ती में
छिड़कता प्यार का उन्माद
बस्ती बस्ती में
लालिमा की ओढ़ चुनरी
चहक रहा टेसू--

जीवन के बियावान में
पलता रहा
पत्तलों की शक्ल में
ढ़लता रहा
आंसुओं के फूल बनकर
टपक रहा टेसू---

"ज्योति खरे"

शुक्रवार, मार्च 08, 2019

स्त्रियां चाहती हैं

चाहती हैं
ईट भट्टोंँ में
काम करने वाली स्त्रियां
कि, उनका भी
अपना घर हो

चाहती हैं
खेतों पर
भूखे रहकर
अनाज ऊगाने वाली स्त्रियां
कि, उनका भी
भरा रहे पेट

चाहती हैं
मजबूर स्त्रियां
कि, उनकी फटी साड़ी मेँ 
न लगे थिगड़ा
सज संवर कर
घूम सकें बाजार हाट

चाहती हैं
यातनाओं से गुजर रही स्त्रियां
उलझनों की
खोल दे कोई गठान
ताकि उड़ सकें
कामनाओं के आसमान में
बिना किसी भय के

चाहती हैं
स्त्रियां
देश दुनियां में
विशेष स्त्रियों के साथ
उपेक्षित स्त्रियों का भी
नाम दर्ज किया जाए

चाहती हैं
स्त्रियां
केवल सुख भोगती स्त्रियों का
जिक्र न हो
जिक्र हो
उपेक्षा के दौर से गुजर रहीं स्त्रियों का

रोज न सही
महिला दिवस के दिन तो
होना चाहिए---

"ज्योति खरे"