शुक्रवार, मार्च 08, 2019

स्त्रियां चाहती हैं

चाहती हैं
ईट भट्टोंँ में
काम करने वाली स्त्रियां
कि, उनका भी
अपना घर हो

चाहती हैं
खेतों पर
भूखे रहकर
अनाज ऊगाने वाली स्त्रियां
कि, उनका भी
भरा रहे पेट

चाहती हैं
मजबूर स्त्रियां
कि, उनकी फटी साड़ी मेँ 
न लगे थिगड़ा
सज संवर कर
घूम सकें बाजार हाट

चाहती हैं
यातनाओं से गुजर रही स्त्रियां
उलझनों की
खोल दे कोई गठान
ताकि उड़ सकें
कामनाओं के आसमान में
बिना किसी भय के

चाहती हैं
स्त्रियां
देश दुनियां में
विशेष स्त्रियों के साथ
उपेक्षित स्त्रियों का भी
नाम दर्ज किया जाए

चाहती हैं
स्त्रियां
केवल सुख भोगती स्त्रियों का
जिक्र न हो
जिक्र हो
उपेक्षा के दौर से गुजर रहीं स्त्रियों का

रोज न सही
महिला दिवस के दिन तो
होना चाहिए---

"ज्योति खरे"

9 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सार्थक रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-03-2019) को "पैसेंजर रेल गाड़ी" (चर्चा अंक-3269) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति उस्ताद जाकिर हुसैन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

Anita ने कहा…

स्त्रियाँ बिलकुल सही चाहती हैं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गहरा कटाक्ष ...
स्त्री दिवस के दिन ... काश हम ये पाते उन्हें बिना किसी भूमिका के ... उनका हक़ उनका अधिकार जो चाना है सबने .... बहुरत प्रभावी रचना ...

Jyoti Dehliwal ने कहा…

चाहती हैं
स्त्रियां
केवल सुख भोगती स्त्रियों का
जिक्र न हो
जिक्र हो
उपेक्षा के दौर से गुजर रहीं स्त्रियों का

रोज न सही
महिला दिवस के दिन तो
होना चाहिए--- बिल्कुल सही।

विश्वमोहन ने कहा…

बहुत सुन्दर!!!