हरे-भरे सपने
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आम आदमी के कान में
फुसफुसाती आवाजें
निकल जाती हैं
यह कहते हुए
कि,
टुकड़े टुकड़े जमीन पर
सपनें मत उगाओ
जानते हो
कबूतरों को
सिखाकर उड़ाया जाता है
लाल पत्थरों के महल से
जाओ
आम आदमी के
सुखद एहसासों को
कुतर डालो
उनकी खपरीली छतों पर बैठकर
टट्टी करो
कुतर डालो सपनों को
सपने तो सपने होते हैं
आपस में लड़ते समय
जमीन पर गिरकर
टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं
काले समय के इस दौर में
सपनों को ऊगने
भुरभुरी जमीन चाहिए
तभी तो सपनें
हरे-भरे लहरायेंगे---
"ज्योति खरे"