गुरुवार, जुलाई 02, 2020

कोहरे के बाद धूप निकलेगी

लघु कथा
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कोहरे के बाद धूप निकलेगी
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सिवनी जाने वाली बस अपने निर्धारित समय से बीस मिनट पहले
ही दीनदयाल बस स्टेंड में लग गयी.
यात्री अपनी अपनी सीटों पर बैठने के लिए चढ़ने लगे, मैं भी अपनी सीट पर जाकर बैठ गया, कुछ देर बाद बस कोलतार की सड़क पर दौड़ने लगी. 
स्वाति से मेरी पहली मुलाकात बस में ही हुई थी, वह बालाघाट जा रही थी और मैं छिंदवाड़ा, बातों का सिलसिला चला उसने बताया कि मेरे पति कालेज में प्रोफेसर हैं, मैं उन्हें सर कहती हूं, पिछले साल ही हमारी शादी हुई है.
बातों के कई दौर चले और हम दोंनो फेसबुक मित्र भी बन गये मोबाइल नम्बरों का आदान प्रदान भी हो गया.
वह सिवनी उतर गयी क्योंकि उसे दूसरी बस पकड़कर बालाघाट जाना था, मैं छिंदवाड़ा पहुंच गया.

कई दिनों तक स्वाति की याद बनी रही उसकी सुंदर छवि आंखों के सामने तैरती रही, फेसबुक में एक दूसरों की पोस्टों में लाईक कमेंटस होते रहे और कभी कभार फोन पर भी बातें हो जाया करती, वह जब भी बात करती, मुझे उसकी हंसी बहुत अच्छी लगती थी,वह कहती आप मेरे अच्छे दोस्त हो ऐसे ही बात कर लिया करो, एक बार तो उसने सर से भी बात करवा दी
"क्या जादू किया है भाई आपने मेरी बीवी पर आपकी बहुत तारीफ करती है.

समय कब कैसे जीवन को बदलता है कोई नहीं जानता और न ही कोई समझ पाता है.
मैं कंम्पनी की तरफ से एक माह की ट्रेनिंग में हैदराबाद चला गया और वह अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गयी.

एक दिन सुबह से ही स्वाति की याद आती रही , आफिस में भी उसे लेकर मन उचाट रहा आखिरकार लंच टाईम में उसे फोन लगा ही लिया.
फोन किसी पुरुष ने रिसीव किया
मैंनें कहा "स्वाति से बात करना है"
पुरुष ने भर्रायी आवाज में कहा
" वह बात नहीं कर सकती है, आज उसके पति का गंगा पूजन है" और उसने फोन काट दिया. 
 उस दिन अपने ऊपर ही क्रोध आता रहा कि मैंने इस बीच उससे बात क्योंं नहीं कि कितना लापरवाह था मैं, लगभग एक माह बाद हिम्मत जुटाकर उससे फोन पर माफी मांगी, उसने इस शर्त पर माफ किया कि मुझसे मिलने आओ तुमसे बात करके मेरे दुख हल्के हो जायेंगे
और मैं दूसरे ही दिन बस में बैठा गया.

बस सिवनी बस स्टेंड में रुकी, उतरकर एक कप चाय पी और कुछ देर बाद बालाघाट वाली बस में बैठ गया.
वह अंतिम रात कैसी रही होगी जब स्वाति सर के पास मौन बैठी होगी
सर जितना बोले होंगे उसमें गहरे अर्थ छिपे होंगे, मौन मैं ही बहुत सारी बातें हुई होंगी,क्योंकि मौन आंतरिक भावनाओं को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम होता है, सर के पास स्वाति की मौजूदगी और मृत्यु की निकटता होगी इस कशमकश में बहुत कुछ घटा होगा, सर ने स्वाति के आंसुओं को पोछने की कोशिश भी की होगी, स्वयं की लाचारी, मृत्यु का भय और स्वाति का भविष्य आंखों के सामने टूटकर बिखर रहे होंगे, सर बहुत समझाना चाह रहे होंगे पर रुंधे कंठ से आवाज़ कहां निकलती है.
उस रात स्वाति सर की मृत देह से लिपटकर बहुत देर तक रोती रही होगी.
पास में बैठे सज्जन ने मुझे हिलाया और कहा " भाई जी बालाघाट आ गया"
मैंने वर्तमान की उंगली पकड़ी और बस से उतर गया.
पास ही खड़े रिक्शे में बैठा और कहा पुराना पुलिस थाना चलो, पता पूंछते पूंछते उसके दरवाजे के सामने खड़ा हो गया,
दरवाजा खटखटाया, स्वाति ने दरवाजा खोला उसे देखकर दुख हुआ, सुंदर, गोरी, मुटदरी सी स्वाति दुबली और काली लग रही है.
वह मुझे देखते ही कहने लगी
" आ गये आभासी दुनियां के मित्र हो न इसिलिए इतने दिनों बाद याद किया"
ऐसा नहीं है, मैंने उसकी हथेलियों को अपनी हथेलियों में रखा और जोर से दबाकर कहा
अब कोहरे के बाद धुप निकलेगी.

"ज्योति खरे"

15 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

धूप बनी रहे। सुन्दर।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अच्छी लघु कथा।

Rakesh ने कहा…

बहुत अच्छी और आप के चैनल पर आवाज़ भी अच्छी थी

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

विश्वमोहन ने कहा…

बहुत सुंदर।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

सुंदर कहानी

विमल कुमार शुक्ल 'विमल' ने कहा…

सुन्दर कोहरे के बाद धूप निकलती ही है।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

बहुत खूब ...सफर में धूप तो होनी चाहिये ...लेकिन सर यह एक अच्छी खासी कहानी बन सकती है . लघुकथा की सीमा से पार ..

Anuradha chauhan ने कहा…

अब कोहरे के बाद धुप निकलेगी,वाह बेहतरीन कहानी।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

उम्दा व सुंदर रचना

Prakash Sah ने कहा…

बढ़िया कहानी है।
इसके बाद क्या हुआ? इस सवाल के साथ अगले भाग का इंतजार रहेगा...

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti Dehliwal ने कहा…

उम्दा रचना।