कर्ज की सुपारी में लपेटकर
भेजी जा रही है
जहरीली फुफकार
हम बेमतलब
जहर उतारने पर तुले हैं
किराय के कबूतरों को
उड़ने दो किराय के आसमान में
हम बेमतलब
अपने आसमान में
अपने पंछियों के
पर कुतरने में तुले हैं
हम बेमतलब
क्यों डर रहें हैं
घाटियां हमारी
वादियां हमारी
हम तो
जहरीले पेड़ों को
जड़ से उखाड़ने पर तुले हैं ------
"ज्योति खरे"
चित्र गूगल से साभार
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