कुछ कागज में लिखी स्मृतियाँ
कुछ में सपने
कुछ में सुख
कुछ में दुख
कुछ में लिखा चाँद
चांद रोटियों की शक्ल में ढल गया
भूख और पेट की बहस में
सपनो की सरसराती आवाजें
जंग लगे आटे के कनस्तर में समा गयीं
तुम्हारे खामोश शब्द
समुंदर की लहरों जैसा कांपते रहे
और मैं
प्रेम को बसाने की जिद में
बनाता रहा मिट्टी का घरोंदा
एक दिन तुम
शर्मीली ठंड में
अपने दुपट्टे में बांधकर जहरीला वातावरण
उतर आयी थी
मेरी खपरीली छत पर
चाँद बनकर ---
# ज्योति खरे
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