मंगलवार, जून 04, 2019

ईद मुबारक


सुबह से
इंतजार है
तुम्हारे मोगरे जैसे खिले चेहरे को
करीब से देखूं
ईद मुबारक कह दूँ
पर तुम
शीरखुरमा, मीठी सिवईयाँ
बांटने में लगी हो

मालूम है
सबसे बाद में
मेरे घर आओगी
दिनभर की थकान उतारोगी
बताओगी
किसने कितनी ईदी दी

तुम
बिंदी नहीं लगाती
पर मैं
इस ईद में
तुम्हारे माथे पर
गुलाब की पंखुड़ी
लगाना चाहता हूं

मुझे नहीं मालूम
तुम इसे
प्रेम भरा बोसा समझोगी
या गुलाब की सुगंध का
आत्मीय अहसास
या ईदी

अब जो भी हो
प्रेम तो जिन्दा रखना है
अपन दोनों को ----

"ज्योति खरे"

6 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

बहुत खूबसूरत एहसास से भरी अभिव्यक्ति सर..वाह👌

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत कोमल एहसासो से भरी रचना ,सादर नमस्कार सर

Meena sharma ने कहा…

आपकी यह रचना पढ़कर यही अहसास होता है कि प्रेम का सिर्फ एक ही धर्म होता है - प्रेम।
सादर।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/06/2019 की बुलेटिन, " 5 जून - विश्व पर्यावरण दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Unknown ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना