कृष्ण का प्रेम
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भक्तिकाल की
कंदराओं से निकलकर
आधुनिक काल की
चमचमाती रौशनियों से सजे
सार्वजानिक जीवन में
कृष्ण के स्थापित प्रेम का
कब प्रवेश हुआ
इसकी कोई तिथि दर्ज नहीं है
दर्ज है केवल प्रेम
प्रेम की सारी मान्यतायें
भक्ति काल में ही
जीवित थी
आधुनिक काल में तो प्रेम
सूती कपड़ों की तरह
पहली बार धुला
औऱ सिकुड़ गया
रेशमी साड़ियों से
द्रोपती का तन ढांकने वाला यह प्रेम
स्त्रियों को देखते ही
मंत्र मुग्ध हो जाता है
चीरहरण के समय की
अपनी उपस्थिति को
भूल चुका यह प्रेम
नाबालिगों से लेकर
बूढ़ों तक का
नायक बन जाता है
राजनितिक दलों का प्रवक्ता
औऱ थानों के हवलदारों
की जेब में रख लिया जाता है
घिनौनी साजिशों से
लिपटी हवाओं ने
कृष्ण के प्रेम को
जब नये अवतार में
पुनर्जीवित किया
अनुशासनहीनता की छाती में
पांव रखवाकर
बियर बार में बैठाया
उसी दिन से
दिलों की धड़कनों में
धड़कने लगा प्रेम
इस गुर को सिखाने
वाले कई उस्ताद
पैदा होने लगे
आत्मसम्मान से भरे
इस प्रेम को
कभी भी आत्मग्लानि का
अनुभव नहीं हुआ
क्योंकि वह आज भी
अपने आपको
भाग्यशाली मानता है
कि,मेरे जन्मदिन पर
शुद्ध घी के
असंख्य दीपक जलाकर
प्रार्थना करते हैं लोग-----
"ज्योति खरे"
7 टिप्पणियां:
सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार(14-08-2020) को "ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो" (चर्चा अंक-3793) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
हमेशा की तरह लाजवाब सृजन। जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।
प्रेम की सारी मान्यतायें
भक्ति काल में ही
जीवित थी
आधुनिक काल में तो प्रेम
सूती कपड़ों की तरह
पहली बार धुला
औऱ सिकुड़ गया
बिलकुल सही कहा आपने ,हमेशा की तरह कुछ अलग अंदाज़ में बहुत कुछ कहता सृजन,सादर नमस्कार आपको
प्रेम की सारी मान्यतायें
भक्ति काल में ही
जीवित थी
आधुनिक काल में तो प्रेम
सूती कपड़ों की तरह
पहली बार धुला
औऱ सिकुड़ गया
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन आदरणीय
हृदय में उमड़े भावों को बहुत सुंदर करिने से सजाए हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
विचारणीय सृजन
गहन विचार।
सटीक और सार्थक।
बहुत सुंदर सृजन।
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