गालियां देता मन
देह्शत भरा माहौल
चुप्पियां दरवाजा
बंद करेंगी
खिडकियां देंगी खोल-----
आदमी की
खाल चाहिये
भूत पीटें डिडोरा---
मरी हुई कली का
खून चूसें भौंरा---
कहती चौराहे की
बुढ़िया
मेरे जिस्म का
क्या मोल-------
थर्मामीटर
नापता
शहर का बुखार---
एकलौते लडके का
व्यक्तिगत सुधार---
शामयाने में
तार्किक बातें
सड़कों में बजता
उल्टा ढोल---------
"ज्योति खरे"
( उंगलियां कांपती क्यों हैं-----से )
देह्शत भरा माहौल
चुप्पियां दरवाजा
बंद करेंगी
खिडकियां देंगी खोल-----
आदमी की
खाल चाहिये
भूत पीटें डिडोरा---
मरी हुई कली का
खून चूसें भौंरा---
कहती चौराहे की
बुढ़िया
मेरे जिस्म का
क्या मोल-------
थर्मामीटर
नापता
शहर का बुखार---
एकलौते लडके का
व्यक्तिगत सुधार---
शामयाने में
तार्किक बातें
सड़कों में बजता
उल्टा ढोल---------
"ज्योति खरे"
( उंगलियां कांपती क्यों हैं-----से )
4 टिप्पणियां:
dehshat or bhay ka sunder chitran
पढ़ कर मन दहल गया दहशत से
यह कविता शून्य से नीचे तापमान मैं लिखी गई है कवि सर पर कबाड़ की टोकरी रख पूरे शहर में घूमता प्रतीत होता है !
वर्तमान समय में पूर्ण रूप से प्रासंगिक
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