पुरखों की पगड़ी में बंधा
सुहागन की
काली मोतियों के बीच फंसा
धडकते दिलों का
बीज मंत्र है-----
फूलों का रंग
भवरों की जान
बसंत सी मादकता
पतझर में ठूंठ सा है----
जंगली जड़ी बूटियों का रसायन
सूखे रॊग की ताबीज में बंद
झाड़ फूक की दवा है-----
चाहे जब
उछाल दिया जाता है आकाश में
मासूम बच्चे की तरह
गिरता है
उल्का पिंड बनकर
कोमल दूब से निखरी जमीन पर
फेंक दिया जाता है
कोल्ड ड्रिंग्स की बोतलों के साथ
समा जाता है अंतस में
चाय की चुस्कियों के संग
च्यूइंगम की तरह
घंटों चबता है-------
बूढे माँ बाप की
दवाई वाली पर्ची में लिखा
फटी जेब में रखा
भटकता रहता है-----
और अंत में
मुर्दे के संग
मुक्ति धाम में
जला दिया जाता है-------
"ज्योति खरे"
13 टिप्पणियां:
विभिन्न दृष्टिकोण-
निरे प्रेम पर |
बढ़िया असर-
आभार सर ||
संवेदनाओं को स्वर देती ,अनुभाव से पगी सार्थक रचना के लिए शुभकामनाये ,आभार
दर्शनपूर्ण कविता।
प्रेम का वर्णन अच्छा किया है !!
जंगली जड़ी बूटियों का रसायन
सूखे रॊग की ताबीज में बंद
झाड़ फूक की दवा है-----
kyaa baat hai ....!!
सच ही तो है ...प्रेम शाश्वत है !!!
प्रेम का विस्तार दिखा ...
प्रेम की लाचारगी दिखी ...
सुन्दर व सार्थक रचना
सादर !
प्रेम के यह रूप देहला गए ....!
विभिन्न रूप प्रेम का, जीवन की कठनाइयों में भी उजास... दर्द में उलझी ज़िंदगी, और शाश्वत अंत... यही जीवन यही प्रेम. गहन अभिव्यक्ति... शुभकामनाएँ.
बहुत ही प्रभावी ... बूढ़े ना बाप की दवाई वाले पर्चे के नजरिये से प्रेम को देखना भी .... कमाल का बिम्ब है ...
सभी का आभार
सभी मित्रों का आभार
प्रेम की महिमा निराली है...
बहुत सुंदर कविता! बधाई!!
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