हींग,मैथी,राई से बघरा मठा
और नये चांवल की खिचड़ी
खाने तब ही मिलती थी
जब सभी
पापा ने कहा
मुझे नियमों से बरी रखो अम्मा ने कहा
पापा ने पुरुष होने का परिचय दिया
अब मुझसे प्रेम नहीं करती तुम
अब मुझसे प्रेम नहीं करती तुम
पापा की हथेली से
फिसलकर गिर गया सूरज
माथे की सिकुड़ी लकीरों को फैलाकर
फिसलकर गिर गया सूरज
माथे की सिकुड़ी लकीरों को फैलाकर
बंधा प्रेम तो
कभी भी टूट सकता है
मेरा निजि प्रेम मेरे बच्चे हैं
पापा बंधें प्रेम को तोड़कर
वैकुंठधाम चले गये "ज्योति खरे "
चित्र -- गूगल से साभार
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