शराफत की ठंड से सिहर गये हैं लोग
दुश्मनी की आंच से बिखर गये हैं लोग--
जिनके चेहरों पर धब्बों की भरमार है
आईना देखते ही निखर गये हैं लोग--
छुटपन का गाँव अब जिला कहलाता है
स्मृतियों के आंगन से बिसर गये हैं लोग--
वो फिरौती की वजह से उम्दा बने
साजिशों के सफ़र से जिधर गये हैं लोग--
दहशत के माहौल में दरवाजे नहीं खुलते
अपने ही घरों से किधर गये हैं लोग--
"ज्योति खरे"
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