सफर से लौटकर
आने की आहटों से
चोंक गए
बरगद, नीम, आम
महुओं का
उड़ गया नशा
बड़े बड़े दरख्तों के
फूल गए फेंफड़े
हर तरफ
कानों में घुलने लगा शोर
कनखियाँ
खोलने लगी
बंधन के छोर
फूलों की धड़कनों को
देने उपहार
खरीदकर ले आया मौसम
सुगंध उधार
फूलों में आ गयी
गुमशुदा जान
सूख गए पनघट पर
ठिठोली की जमघट
बिन ब्याहे सपनों ने
ले ली है करवट
प्रेम के रोग की
इकलौती दवा
आ गयी इठलाती
बासंती हवा----
" ज्योति खरे "
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