प्रेम नहीं विद्रोह लिखो--
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नंगी प्रजातियों की नंगी ज़बान
थूककर चाट रहे अपने बयान
चेहरों पर कराकर फेशियल
खोल ली है बारूद की दुकान
कन्या भोजन में कन्याओं का रैप
खादी पहनकर बन रहे महान
पी रहे चचोरकर सारी व्यवस्थायें
सुख रहे खेत,खलिहान और बगान
लतखोरों की रोज उधेडो खाल
भाषा नहीं डंडों से सम्हालो कमान---
"ज्योति खरे"
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