अम्मा
सुबह सुबह
फटा-फट नहाकर
अध-कुचियाई साड़ी लपेटकर
तुलसी चौरे पर
सूरज को प्रतिदिन बुलाती
आकांक्षाओं का दीपक जलाती
फिर
दर्पण के सामने खड़ी होकर
अपने से ही बात करतीं
भरती चौड़ी लम्बी मांग
सिंदूर की बिंदी माथे पर लगाते-लगाते
सोते हुये पापा को जगाती
सिर पर पल्ला रखते हुए
कमरे से बाहर निकलते ही
चूल्हे-चौके में खप जातीं--
तीजा,हरछ्ट,संतान सातें,सोमवती अमावस्या,वैभव लक्ष्मी
जाने अनजाने अनगिनत त्यौहार में
दिनभर की उपासी अम्मा
कभी मुझे डांटती
दौड़ती हुई छोटी बहन को पकड़ती
बहुत देर से रो रहे मुन्ना को
अपने आँचल में छुपाये
पालथी मार कर बैठ जातीं थी
दिनभर की उपासी अम्मा को
ऐसे ही क्षणों में मिलता था आराम---
अम्मा कभी नहीं हुई बीमार
वे जानती थीं कि
कौन ले जायेगा अस्पताल
वर्षों हो गये बांये पैर की ऐड़ी में दर्द हुए
किसने की फिकर
किसको है चिंता
शाम होते ही
दादी को चाहिए पूजा की थाली
पापा को चाहिये आफिस से लौटते ही खाना
दिनभर बच्चों के पीछे भागते
गायब हो जाता था ऐड़ी का दर्द--
कभी-कभी बहुत मुस्कराती थीं अम्मा
जिस दिन पापा
आफिस से, देर से लौटते समय
ले आते थे मोंगरे की माला
छेवले के पत्ते में लिपटा मीठा पान
उस दिन अम्मा
दुबारा गुंथती थी चोटी
खोलती थी "श्रृंगारदान"
लगाती थी "अफगान" स्नो
कर लेती थीं अपने होंठ लाल
सुंदर अम्मा और भी सुंदर हो जातीं
उस शाम महक जाता था
समूचा घर--
अम्मा जैसे ही जलाती थीं
सांझ का दीपक
जगमगा जाता था घर
महकने लगता था कोना कोना
सजी संवरी अम्मा
फिर जुट जातीं थीं रात की ब्यारी में
चूल्हा,चौका,बरतन समेटने में
लेट जाती थी,थकी हारी
चटाई बिछाकर अपनी जमीन पर--
अम्मा के पसीने से सनी मिट्टी से बने घर में
तुलसी चौरे पर रखा
उम्मीदों का दीपक
आज भी जल रहा है
आकांक्षाओं का सूरज
प्रतिदिन ऊग रहा है
जीवन का सृजन
अम्मा से ही प्रारंभ होता है-----
"ज्योति खरे"
19 टिप्पणियां:
वाह
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार मई 14, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार आपका
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-05-2019) को "लुटा हुआ ये शहर है" (चर्चा अंक- 3334) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना टी. बालासरस्वती जी की 101वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
यादों की अगरबत्ती महक उठी...!!!
वाह सुंदर प्रस्तुति
शानदार प्रस्तुति मर्मस्पर्शी।
हर आम भारतीय मां घर परिवार को समर्पित।
अप्रतिम।
आभार आपका
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
सुंदर अम्मा और भी सुंदर हो जातीं
उस शाम महक जाता था
समूचा घर--
वाह!!!
अम्मा और घर परिवार का बहुत ही खूबसूरत शब्दचित्रण.... बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
अध-कुचियाई साड़ी लपेटकर
तुलसी चौरे पर
सूरज को प्रतिदिन बुलाती
आकांक्षाओं का दीपक जलाती
दर अम्मा और भी सुंदर हो जातीं
उस शाम महक जाता था
समूचा घर--
सुंदर सजीव दृश्य संजोये बहुत ही लाजवाब और प्यारी रचना | मेरी तो आँखें नम हो गई पढ़कर | सराहना के शब्द नहीं बस शुभकामनायें | माँ की महिमा गाती अनमोल , अतुलनीय रचना के लिए |
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
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