बुधवार, अप्रैल 15, 2020

मृत्यु ने कहा- मैं मरना चाहती हूं---

मैं अहसास की जमीन पर ऊगी
भयानक, घिनौनी, हैरतंगेज
जड़हीना अव्यवस्था हूं
जीवन के सफर में व्यवधान
रंग बदलते मौसमों के पार
समय के कथानक में विजन

मैं जानना चाहती हूं
अपनी पैदाइश की घड़ी
दिन, वजह
जैसे भी जी सकने की कल्पना 
लोग करते हैं
क्या वैसा ही
मैं उन्हें करने देती हूं
शायद नहीं

प्रश्न बहुत हैं
मुझमें मुझसे
काश ! विश्लेषण कर पाती
मृत्यु नाम के अंधेरे में नहीं
स्वाभाविक जीवन क्रम में भी
अपनी भूमिका तय कर पाती

मैं सोचती थी
प्रश्न सभी हल कर दूंगी
संघर्षों से मुक्त कर दूंगी
लोग करेंगे मेरी प्रतीक्षा 
वैसे ही 
जैसे करते हैं जन्म की
मेरा अस्तित्व 
अनिर्धारित टाइम बम की तरह है
हर घड़ी गड़ती हूं 
कील की तरह 

हर राह पर मैंने
अपना कद नापा है
मापा है अपना वजन
मेरी उपस्थिति से ज्यादा
भयावह है 
मेरा अहसास
पर मैं कभी नहीं समा पायी
लोगों के दिलों की
छोटी सी जिन्दगी में
मुझे हमेशा
फेंक दिया गया
अफसोस की खाई में

क्यों लगा रहे हो मुझे गले
मरने से पहले 
प्रेम की दुनियां में
किसी सुकूनदेह 
घटना की तरह

मैं अब 
भटकते भटकते 
बेगुनाह लोगों को मारते 
ऊकता गयी हूं
क्या करुं
नियति है मेरी
जो भी मेरे रास्ते में मिलेगा 
उसे मारना तो पड़ेगा

मैं अपने आप को
मिटा देना चाहती हूं 
स्वभाविक जीवन और 
तयशुदा बिन्दुपथ से

बस एक शर्त है मेरी
बंद दरवाजों के भीतर 
अपनों के साथ 
अपनापन जिंदा करो
क्योंकि
मेरे रास्ते में 
जो भी व्यवधान डालेगा
वह पक्का मारा ही जायेगा

मुझे सुनसान रास्ते चाहिए
ताकि मैं 
बहुत तेज दौड़कर
किसी विशाल 
पहाड़ से टकराकर 
टूट- फूट जाऊं
क्योंकि 
मैं मरना चाहती हूं
मैं मरना चाहती हूं---

( इसे यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं- http://www.youtube.com/c/jyotikhare  )





शनिवार, अप्रैल 04, 2020

इन दिनों सपने नहीं आते


सपने
अभी अभी लौटे हैं
कोतवाली में
रपट लिखाकर

दिनभर
हड़कंप मची रही
सपनों की बिरादरी में
क्या अपराध है हमारा
कि आंखों ने
बंद कर रखे हैं दरवाजे

बचाव में
आंखों ने भी
रपट लिखा दी
दिनभर की थकी हारी आंखेँ
नहीं देखना चाहती सपने

जब समूची दुनियां में
कोहराम मचा हो
मृत्यु के सामने 
जीवन
जिंदा रहने के लिए 
घुटनों के बल खड़ा 
गिड़गिड़ा रहा हो 

मजदूर और मजबूर लोग 
शहरों और महानगरों से
अपना कुछ जरुरी सामान 
सिर पर रखकर 
पैदल जा रहें हों

भुखमरी ने पांव पसार  लिए हों 
भय और आशंका ने  
दरवाजों पर सटकनी चढ़ा रखी हो
नींद आंखों से नदारत हो तो 
आंखें   
सपने कहां देख पायेंगी
इनसे केवल 
आंसू ही टपकेंगे 

सपने और आंखों की
बहस में 
शहर में 
लोगों में 
तनाव और दंगे का माहौल बना है
शांति के मद्देनजर
दोनों हवालात में
नजरबंद हैं

जमानत के लिए
अफरा तफरी मची है-----