मैं अहसास की जमीन पर ऊगी
भयानक, घिनौनी, हैरतंगेज
जड़हीना अव्यवस्था हूं
जीवन के सफर में व्यवधान
रंग बदलते मौसमों के पार
समय के कथानक में विजन
मैं जानना चाहती हूं
अपनी पैदाइश की घड़ी
दिन, वजह
जैसे भी जी सकने की कल्पना
लोग करते हैं
क्या वैसा ही
मैं उन्हें करने देती हूं
शायद नहीं
प्रश्न बहुत हैं
मुझमें मुझसे
काश ! विश्लेषण कर पाती
मृत्यु नाम के अंधेरे में नहीं
स्वाभाविक जीवन क्रम में भी
अपनी भूमिका तय कर पाती
मैं सोचती थी
प्रश्न सभी हल कर दूंगी
संघर्षों से मुक्त कर दूंगी
लोग करेंगे मेरी प्रतीक्षा
वैसे ही
जैसे करते हैं जन्म की
मेरा अस्तित्व
अनिर्धारित टाइम बम की तरह है
हर घड़ी गड़ती हूं
कील की तरह
हर राह पर मैंने
अपना कद नापा है
मापा है अपना वजन
मेरी उपस्थिति से ज्यादा
भयावह है
मेरा अहसास
पर मैं कभी नहीं समा पायी
लोगों के दिलों की
छोटी सी जिन्दगी में
मुझे हमेशा
फेंक दिया गया
अफसोस की खाई में
क्यों लगा रहे हो मुझे गले
मरने से पहले
प्रेम की दुनियां में
किसी सुकूनदेह
घटना की तरह
मैं अब
भटकते भटकते
बेगुनाह लोगों को मारते
ऊकता गयी हूं
क्या करुं
नियति है मेरी
जो भी मेरे रास्ते में मिलेगा
उसे मारना तो पड़ेगा
मैं अपने आप को
मिटा देना चाहती हूं
स्वभाविक जीवन और
तयशुदा बिन्दुपथ से
बस एक शर्त है मेरी
बंद दरवाजों के भीतर
अपनों के साथ
अपनापन जिंदा करो
क्योंकि
मेरे रास्ते में
जो भी व्यवधान डालेगा
वह पक्का मारा ही जायेगा
मुझे सुनसान रास्ते चाहिए
ताकि मैं
बहुत तेज दौड़कर
किसी विशाल
पहाड़ से टकराकर
टूट- फूट जाऊं
क्योंकि
मैं मरना चाहती हूं
मैं मरना चाहती हूं---
( इसे यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं- http://www.youtube.com/c/jyotikhare )
21 टिप्पणियां:
वाह! लाजवाब!!!
वाह ! लाजवाब !! खूबसूरत प्रस्तुति आदरणीय ।
सुंदर रचना
अनुभूतिप्रवण रचना !
बहुत सुन्दर रचना सर ,बधाई आपको
बहुत सुन्दर रचना सर ,,बहुत बधाई आपको
मुझे सुनसान रास्ते चाहिए
ताकि मैं
बहुत तेज दौड़कर
किसी विशाल
पहाड़ से टकराकर
टूट- फूट जाऊं
क्योंकि
मैं मरना चाहती हूं
मैं मरना चाहती हूं---
बस सब अपने घरों में कैद होकर इसका रास्ता साफ कर दें...
बहुत सुन्दर समसामयिक सृजन।
सत्य हैं ,मृत्यु भी थक चुकी होगी बेगुनाहो को मारते मारते ,गहरा चिंतन ,सादर नमस्कार सर
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
वाह! अद्भुत। शीर्षक ही लाजवाब है।
असाधारण !!
अभिनव हृदय स्पर्शी सृजन।
हमेशा की तरह लाजवाब रचना है ...
लाजवाब रचना आदरणीय ज्योति जी।
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०२-०५-२०२०) को "मजदूर दिवस"(चर्चा अंक-३६६८) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
बेहद खूबसूरत रचना आदरणीय 👌
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