पंछी
आसमान में उड़ते समय
सीख लेते हैं
आजादी का हुनर
बैठते हैं जिस डगाल पर
कुतरते नहीं
रखते हैं हराभरा
बनाते हैं घोंसला
वे चोंच नहीं चलाते
चोंच से चुन-चुन कर
लाते हैं दाना
भरते हैं
अपने बच्चों का पेट
बहेलिये
किसी गुप्त जगह पर बैठकर
बनाते हैं योजना
बिछाकर लालच का जाल
फैंक देते हैं
गिनती के दाने
जाल में फंसे
फड़फड़ाते पंछियों को
देखकर
फिर बहेलियों का झुंड
लगाता है ठहाके
मनाता है
जीत का जश्न
पंछियों ने
फड़फड़ाना छोड़कर
अपने जिंदा रहने की
मुहिम चलाई
अपनी सतर्कता के पंख खोले
और जंगल में इकठ्ठे हो गए
यह तय किया
कि पहले
बहेलियों के जाल को
कुतरेंगे
भूखे रहेंगे
पर उनका फेंका हुआ
दाना नहीं खाएंगे
साथ में
यह भी तय किया
कि अब
घरों की छतों पर
नहीं बैठेंगे
पंछी अब
घर की छत पर
आकर नहीं बैठते--
" ज्योति खरे "