शनिवार, जनवरी 23, 2021

पंछियों ने---

पंछी
आसमान में उड़ते समय
सीख लेते हैं
आजादी का हुनर
बैठते हैं जिस डगाल पर
कुतरते नहीं
रखते हैं हराभरा
बनाते हैं घोंसला

वे चोंच नहीं चलाते
चोंच से चुन-चुन कर 
लाते हैं दाना
भरते हैं
अपने बच्चों का पेट

बहेलिये 
किसी गुप्त जगह पर बैठकर 
बनाते हैं योजना 
बिछाकर लालच का जाल 
फैंक देते हैं
गिनती के दाने

जाल में फंसे
फड़फड़ाते पंछियों को
देखकर
फिर बहेलियों का झुंड 
लगाता है ठहाके
मनाता है 
जीत का जश्न

पंछियों ने
फड़फड़ाना छोड़कर 
अपने जिंदा रहने की
मुहिम चलाई
अपनी सतर्कता के पंख खोले
और जंगल में इकठ्ठे हो गए
यह तय किया
कि पहले
बहेलियों के जाल को
कुतरेंगे 
भूखे रहेंगे
पर उनका फेंका हुआ
दाना नहीं खाएंगे
साथ में 
यह भी तय किया
कि अब
घरों की छतों पर
नहीं बैठेंगे

पंछी अब
घर की छत पर 
आकर नहीं बैठते--

" ज्योति खरे "

गुरुवार, जनवरी 14, 2021

अम्मा का निजि प्रेम

अम्मा का निजि प्रेम
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आटे के ठोस
और तिली के मुलायम लड्डू
मीठी नीम के तड़के से
लाल मिर्च
और शक्कर भुरका नमकीन
हींग,मैथी,राई से बघरा मठा
और नये चांवल की खिचड़ी

खाने तब ही मिलती थी
जब सभी
तिल चुपड़ कर नहाऐं
और अम्मा के भगवान के पास
एक एक मुठ्ठी कच्ची खिचड़ी चढ़ाऐं

पापा ने कहा
मुझे नियमों से बरी रखो
बच्चों के साथ मुझे ना घसीटो 
सीधे पल्ले को सिर पर रखते हुए
अम्मा ने कहा
नियम सबके लिए होते हैं

पापा ने पुरुष होने का परिचय दिया
क्या अब मुझसे प्रेम नहीं करती 
मेरा सम्मान नहीं करती तुम
अम्मा ने तपाक से कहा
मैं करती हूं सम्मान 
पट तुमसे प्रेम नहीं करती

पापा की हथेली से
फिसलकर गिर गया सूरज 
माथे की सिकुड़ी लकीरों को फैलाकर
पूंछा क्यों ?
अम्मा ने
जमीन में पड़े पापा के सूरज को उठाकर
सिंदूर वाली बिंदी में
लपेटते हुए बोला
तुम्हारा और मेरा प्रेम
समाज और घर की चौखट से बंधा है
जो कभी मेरा नहीं रहा

बांधा गया प्रेम तो
कभी भी टूट सकता है
निजि प्रेम कभी नहीं टूटता
मेरा निजि प्रेम मेरे बच्चे हैं

पापा बंधें प्रेम को तोड़कर
वैकुंठधाम चले गये
अम्मा आज भी
अपने निजि प्रेम को जिन्दा रखे
अपनी जमीन पर खड़ी हैं ---

"ज्योति खरे "