प्रेम
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लड़कों की जीन्स के जेब में
तितिर-बितिर रखा
लड़कियों की
चुन्नी के छोर में
करीने से बंधा
दूल्हे की पगड़ी में
कलगी के साथ खुसा
सुहागन की
काली मोतियों के बीच में फंसा
धडकते दिलों का
बीज मंत्र है प्रेम
फूलों की सुगंध
भंवरों की जान
बसंत की मादकता
पतझर में ठूंठ सा है प्रेम
जंगली जड़ी बूटियों का रसायन
झाड़ फूंक और सम्मोहन
के ताबीज में बंद
सूखे रोग की दवा है प्रेम
फुटबॉल जैसा
एक गोल से
दूसरे गोल की तरफ
जाता है
बच्चों की तरह
उचका दिया जाता है
आकाश की तरफ
गोद में गिरते ही
खिलखिलाने लगता है
दरकी जमीन पर
कोमल हरी घास
की तरह
अंकुरित होता है
खाली बोतलों सा लुढ़कता
बिस्किट की तरह
चाय में डूबता
पाउच में बंद
पान की दुकान में बिकता
च्यूइंगम की तरह
घंटों चबाया जाता है प्रेम
माँ बाप की
दवाई वाली पर्ची में लिखा
फटी जेबों में रखा रखा
भटकता रहता है प्रेम
और अंत में
पचड़े की पुड़िया में लपेटकर
डस्टबिन में
फेंक दिया जाता है प्रेम---
"ज्योति खरे"