डूबते सूरज को
उठा लाया हूं
तुम्हें सौंपने
कि अभी बाकी है
घुप्प अंधेरों से लड़ना
कि अभी बाकी है
नफरतों की चादरों से ढंकी
प्रेम के ख़िलाफ़ हो रही
साजिशों का
पर्दाफाश करना
काली करतूतों की
काली किताब का
ख़ाक होना
कि अभी बाकी है
लड़कियों का
उजली सलवार कमीज़ पहनकर
दिलेरी से
नंगों की नंगई को
चीरते निकल जाना
कि अभी बाकी है
धरती पर
स्त्री की सुंदरता का
सुनहरी किरणों से
सुनहरी व्याख्या लिखना
कि अभी बहुत कुछ बाकी ना रहे
इसलिए
तुम्हारी लहराती चुन्नी में
रख रहा हूं सूरज
मुझे मालूम है
तुम फेर कर
प्रेममयी उंगलियां
बस्तियों की हर चौखट पर
भेजती रहोगी
सुबह का सवेरा
और
सूरज से कहोगी
कि दिलेरी से ऊगो
मैं तुम्हारे साथ हूँ
स्त्री के कारण ही
जीवित होता है
नया सृजन
कायम रहती है दुनियां
क्योंकि स्त्री
अपनी चुन्नी में
बांधकर रखती है हरदम
निःस्वार्थ प्रेम -----
◆ज्योति खरे