गुरुवार, अप्रैल 14, 2022

फिर लिखूंगी नए सिरे से

स्कूल की 
टाटपट्टी में बैठकर
स्लेट में 
खड़िया से लिखकर सीखा
भविष्य का पहला पाठ
फिर प्रारंभ हुआ
अपने आप को
समझने का दूसरा पाठ
तीसरे पाठ में 
समझने लगी
दुनियादारी

इस शालीन दौर से गुजरते हुए
मुझे भी हुआ प्रेम
शायद उसे भी हुआ होगा
तभी तो 
मुझसे कहकर गया था
जा रहा हूँ शहर
जीने का साधन जुटाने
लौटकर आऊंगा
तुम्हें लेने

शिकायत नहीं है मुझे
उससे
कि वह लौटा नहीं

फैसला मेरे हाथ में है
कि,किस तरह जीवन बिताना है
छुपकर रोते हुए
या खिलखिलाकर
खुरदुरे रास्तों को पूर कर

हांथों की लकीरों को
रोज सुबह
माथे पर फेर लेती हूं
और शाम होते ही
बांस की खपच्चियों से
जड़ी खिड़की पर
खड़ी हो जाती हूँ
यादों में
नया रंग भरने

अपलक आंखों के
गिरते पानी से
एक दिन
धुल जाएंगे
सारे प्रतिबिम्ब
फिर नए सिरे से लिखूंगी
खड़िया से
स्लेट पर
इंतजार---

◆ज्योति खरे

13 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह। सुन्दर सृजन।

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

मन को छूती बहुत सुंदर रचना ।

Kamini Sinha ने कहा…

अपलक आंखों के
गिरते पानी से
एक दिन
धुल जाएंगे
सारे प्रतिबिम्ब
फिर नए सिरे से लिखूंगी
खड़िया से
स्लेट पर
इंतजार---

बहुत खूब, हृदय स्पर्शी सृजन सर,सादर नमस्कार 🙏

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

Bahut hi Shandar Rachna

Amrita Tanmay ने कहा…

नये सिरे से फिर-फिर लिखना ही तो शायद ज़िंदगी है। बहुत ही सुन्दर लिखा है...

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

MANOJ KAYAL ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति

कविता रावत ने कहा…


ये सच है कि इंसान जैसा चाहे वैसा जी सकता है सबकुछ उसके हाथ में होता है
बहुत सुन्‍दर