मेरे हिस्से का बचा हुआ प्रेम
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फूलों को देखकर कभी नहीं लगता
कि,एक दिन मुरझा कर
बिखर जाएंगे ज़मीन पर
तितलियों को उड़ते देखकर भी कभी नहीं लगा
कि,इनकी उम्र बहुत छोटी होती है
समूचा तो कोई नहीं रहता
देह भी राख में बदलने से पहले
अपनी आत्मा को
हवा में उड़ा देती है
कि,जाओ
आसमान में विचरण करो
लेकिन मैं
स्मृतियों के निराले संसार में
जिंदा रहूंगा
खोलूंगा
जंग लगी चाबी से
किवाड़ पर लटका ताला
ताला जैसे ही खुलेगा
धूल से सनी किताबों से
फड़फड़ाकर उड़ने लगेंगी
मेरी अनुभूतियां
सरसराने लगेंगी
अभिव्यक्तियां
जो अधलिखे पन्नों में
मैंने कभी दर्ज की थी
पिघलने लगेगी
कलम की नोंक पर जमी स्याही
पीली पड़ चुकी
उपहार में मिली
कोरी डायरी में
अब मैं नहीं
लोग लिखेंगे
मेरे हिस्से का
बचा हुआ प्रेम---
◆ज्योति खरे