गीत-----सूख रहे आंगन के पौधे----------
घर में जबसे अपनों ने
अपनी अपनी राह चुनी
चाहत के हर दरवाजे पर
मकड़ी ने दीवार बुनी............
लौटा वर्षों बाद गाँव में
सहमा सा चौपाल मिला
बाबूजी का टूटा चश्मा
फटा हुआ रुमाल मिला
टूट रही अम्मा की सांसे
कानो ने इस बार सुनी..........
मंदिर की देहरी पर बैठी
दादी दिनभर रोती हैं
तरस रहीं अपनेपन को
रात रात नहीं सोती हैं
बैठ बैठ कर यहाँ वहां
बहुयें करती कहा सुनी..........
दवा दवा चिल्लाते दादा
खांसी रोक नहीं पाते
बडे बड़ों की क्या बतायें
बच्चे भी पास नहीं आते
सूख रहे आँगन के पौधे
दीमक ने हर डाल घुनी..........
"ज्योति खरे"
बुधवार, जुलाई 25, 2012
शुक्रवार, जुलाई 20, 2012
नवगीत********** =सरकती प्यार की चुनरी=
नवगीत**********
=सरकती प्यार की चुनरी=
------------------------------ -------------------
बांध कर पास रखना
तुम्हारा काम है
में पंछी हूँ
उड़ जाऊंगा...........
तुम अकेले ताकते रहना
अपनों से में
जुड़ जाऊंगा..............
साथ रहते अगर
प्यार में उड़ना सिखाता
स्वर्ग के साये में
आसमान का अर्थ बताता
तुम नहीं तो क्या करूँ
में अकेला
फडफडाऊँगा...............
बैठकर आँगन में जब
चांवल चुनोगी
सरकती प्यार की चुनरी
स्म्रतियों के साथ रखोगी
चेह्कोगी चिड़िया बनकर
में भटकता
घर तुम्हारे
मुड़ आऊंगा......................
"ज्योति खरे "
=सरकती प्यार की चुनरी=
------------------------------
बांध कर पास रखना
तुम्हारा काम है
में पंछी हूँ
उड़ जाऊंगा...........
तुम अकेले ताकते रहना
अपनों से में
जुड़ जाऊंगा..............
साथ रहते अगर
प्यार में उड़ना सिखाता
स्वर्ग के साये में
आसमान का अर्थ बताता
तुम नहीं तो क्या करूँ
में अकेला
फडफडाऊँगा...............
बैठकर आँगन में जब
चांवल चुनोगी
सरकती प्यार की चुनरी
स्म्रतियों के साथ रखोगी
चेह्कोगी चिड़िया बनकर
में भटकता
घर तुम्हारे
मुड़ आऊंगा......................
"ज्योति खरे "
गुरुवार, जुलाई 19, 2012
नव गीत ---- साँस रखी दावं ......
नव गीत ----
साँस रखी दावं ......
दहशत की धुंध से
घबडाया गाँव
भगदड़ में भागी
धूप और छावं............
अपहरण गुंडागिरी
खेत की सुपारी
दरकी जमीन पर
मुरझी फुलवारी
मिटटी को पूर रहे
छिले हुए पांव............
कटा फटा जीवन
खूटी पर लटका
रोटी की खातिर
गली गली भटका
जीवन के खेल में
साँस रखी दांव...........
प्यासों का सूखा
इकलौता कुंवा
उड़ लाशों का
मटमैला धुआं
चुल्लू भर झील में
डूब रही नाँव..............
"ज्योति खरे "
साँस रखी दावं ......
दहशत की धुंध से
घबडाया गाँव
भगदड़ में भागी
धूप और छावं............
अपहरण गुंडागिरी
खेत की सुपारी
दरकी जमीन पर
मुरझी फुलवारी
मिटटी को पूर रहे
छिले हुए पांव............
कटा फटा जीवन
खूटी पर लटका
रोटी की खातिर
गली गली भटका
जीवन के खेल में
साँस रखी दांव...........
प्यासों का सूखा
इकलौता कुंवा
उड़ लाशों का
मटमैला धुआं
चुल्लू भर झील में
डूब रही नाँव..............
"ज्योति खरे "
शनिवार, जुलाई 14, 2012
शुक्रवार, जुलाई 13, 2012
रविवार, जुलाई 01, 2012
खुश रहो कहकर चला...
खुश रहो कहकर चला
जानता हूँ उसने छला.............
सूरज दोस्त था उसका
तेज गर्मी से जला...............
चांदनी रात भर बरसी
बर्फ की तरह गला................
उम्र भर सीखा सलीका
फटे नोट की तरह चला..........
रोटियों के प्रश्न पर
उम्र भर जूता चला.............
सम्मान का भूखा रहा
भुखमरी के घर पला............
"ज्योति"
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