सोमवार, नवंबर 05, 2012

करवा चौथ का चाँद उसी दिन रख दिया था हथेली पर

करवा चौथ का चाँद
उसी दिन रख दिया था
हथेली पर तुम्हारे
जिस दिन
मेरे आवारापन को
स्वीकारा था तुमने---------

सूरज से चमकते गालों पर
पपड़ाए होंठों पर
रख दिये थे 
कई कई चाँद----
बदतमीज़ कहते
भाग रही थी तुम
पकड़ लिया था
चुनरी का कोना
झीना,झपटी में
फट गया कोना-----

करवा चौथ का चाँद
उसी दिन रख दिया था
हथेली पर तुम्हारे
जिस दिन---
विरोधों के बावजूद
ओढ़ ली थी तुमने
उधारी में खरीदी
मेरे अस्तित्व की चुनरी--------

अब
अपने प्रेम के आँगन में
खड़ी होकर
आटे की चलनी से
क्यों देखती हो चाँद-------

तुम्हारी मुट्ठी में कैद है
तुम्हारा चाँद--------
                  "ज्योति खरे"

(उंगलियां कांपती क्यों हैं-----से )  

 

4 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सहज स्वाभाविक प्यारी अभिव्यक्ति

Unknown ने कहा…

pyar ki behad pyari bhawna

शब्द मसीहा ने कहा…

Bahut bahut sunder aur hrudayasparshi..sadar vandan

गुड्डोदादी ने कहा…

करवा चौथ का चाँद
उसी दिन रख दिया था
हथेली पर तुम्हारे
जिस दिन
मेरे आवारापन को
स्वीकारा था तुमने
(भावुक )