सपनों ने
गली की पुलिया पर बैठकर
यह तय किया
अब नहीं दिखेंगे-------
सपने कोलाहल में
गली की पुलिया पर बैठकर
यह तय किया
अब नहीं दिखेंगे-------
सपने कोलाहल में
कैसे जीवित रह पायेंगे
यह सोचकर
सपनों ने छोड़ दिया है
भीड़ में रहना-------
सपनों ने कभी नहीं चाहा
कि दंगा हो
पैदा हो नफरत
सपने तो चाहते हैं
रहना अलहदा
हर बुरे ख्याल से--------
सपने
सदभाव की आँखों में
रहेंगे
वहीं तय करेंगे
दिखें या ना दिखें---------
"ज्योति खरे"
यह सोचकर
सपनों ने छोड़ दिया है
भीड़ में रहना-------
सपनों ने कभी नहीं चाहा
कि दंगा हो
पैदा हो नफरत
सपने तो चाहते हैं
रहना अलहदा
हर बुरे ख्याल से--------
सपने
सदभाव की आँखों में
रहेंगे
वहीं तय करेंगे
दिखें या ना दिखें---------
"ज्योति खरे"
7 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर ....सपनों सी प्यारी... सहज.... चाह...:)
सपनों ने कभी नहीं चाहा
कि दंगा हो
पैदा हो नफरत
सपने तो चाहते हैं
रहना अलहदा
हर बुरे ख्याल से--------
पुलिया पर बैठ सपने देखने का बिम्ब सुन्दर और बड़ा ही सहज लगा ... बधाई
सपनों ने कभी नहीं चाहा
कि दंगा हो
पैदा हो नफरत
सपने तो चाहते हैं
रहना अलहदा
हर बुरे ख्याल से--------
पुलिया पर बैठ सपने देखने का बिम्ब सुन्दर और बड़ा ही सहज लगा ... बधाई
सपनों ने कभी नहीं चाहा
कि दंगा हो
पैदा हो नफरत
सपने तो चाहते हैं
रहना अलहदा
हर बुरे ख्याल से--------
बिलकुल सही लिखे हैं आप .......... सहमत हूँ !!
बहुत खूब .सपने भी बोलते हैं सपने भी सोचते हैं
बहुत खूब.. सपनो की भी अपनी चाहत होती है
बहुत सुंदर !
सपनों सी कोमल भावना, कोमल चाह !
~सादर !
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