शराफत की ठंड से सिहर गये हैं लोग
दुश्मनी की आंच से बिखर गये हैं लोग------
जिनके चेहरों पर धब्बों की भरमार है
आईना देखते ही निखर गये हैं लोग--------
छुटपन का गाँव अब जिला कहलाता है
धुंधलाई यादों से बिसर गये हैं लोग--------
वो फिरौती की वजह से उम्दा बने
साजिशों के सफ़र से जिधर गये हैं लोग--------
दहशत के माहौल में दरवाजे नहीं खुलते
अपने ही घरों से किधर गये हैं लोग---------
"ज्योति खरे"
दुश्मनी की आंच से बिखर गये हैं लोग------
जिनके चेहरों पर धब्बों की भरमार है
आईना देखते ही निखर गये हैं लोग--------
छुटपन का गाँव अब जिला कहलाता है
धुंधलाई यादों से बिसर गये हैं लोग--------
वो फिरौती की वजह से उम्दा बने
साजिशों के सफ़र से जिधर गये हैं लोग--------
दहशत के माहौल में दरवाजे नहीं खुलते
अपने ही घरों से किधर गये हैं लोग---------
"ज्योति खरे"
1 टिप्पणी:
जिनके चेहरों पर धब्बों की भरमार है
आईना देखते ही निखर गये हैं लोग--
बहुत खूब ... लाजवाब शेर हैं सभी इस गज़ल के ...
एक टिप्पणी भेजें