उबलता हुआ जीवन
भाप बनकर चिपक जाता है जब
भाप बनकर चिपक जाता है जब
अपने आगोश में
फिर भटक भटक कर
देखकर धरती की सतह पर
संत्रास की लकीरों का जादू
कलह की छाती पर
रंगों का सम्मोहन
दरकते संबंधों में
लोक कलाकारी
दहशत में पनप रहे संस्कार----
इस भारी दबाब में बरसती बारिश
बूंद बन जाती है
क्यों कि बूंद
सहनशील होती
बूंद खामोश होती है
अहसास की खुरदुरी जमीन को
चिकना करती है
बूंद में तनाव नहीं होता-----
अहसास की खुरदुरी जमीन को
चिकना करती है
बूंद में तनाव नहीं होता-----
बूंद
तृप्त कर देती है अतृप्त प्यार
सींच देती है
अपनत्व का बगीचा------
बूंद
तुम्हारे कारण ही
धरती और जीवन में जिन्दा है हरियाली-----
"ज्योति खरे"
चित्र गूगल से साभार
42 टिप्पणियां:
फिर भटक भटक कर
बरसाने लगता है
पानीदार जीवन----
देखकर धरती की सतह पर
संत्रास की लकीरों का जादू
कलह की छाती पर
रंगों का सम्मोहन
दरकते संबंधों में
लोक कलाकारी
दहशत में पनप रहे संस्कार----
इस भारी दबाब में बरसती बारिश
बूंद बन जाती है
गज़ब का शब्द चयन और बेहतरीन भाव
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (17-05-2013) के राजनितिक वंशवाद की फलती फूलती वंशबेल : चर्चा मंच-...1247 मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सम्वेंदं शील काश ! बूंद रिश्ते को प्रगाढ़ कर पाती .. मेरे ब्लॉग पर भी पधारे
बहुत खूब !!बूंद तुम्हारे कारण ही धरती और जीवन में जिन्दा है हरियाली....सुंदर प्रस्तुति.
मनोहारी प्रस्तुति...बधाई
क्यों कि बूंद
सहनशील होती
बूंद खामोश होती है ....
-------------
बेहतरीन पोस्ट ...
बूँद के रूप में जो आसमां का प्यार हम पर बरसता है उसका कितना सुंदर बिंब आपने प्रस्तुत किया, आभार
सच में बूंद भी जीवन का कारण है। सुन्दर पंक्तियाँ।
नये लेख : 365 साल का हुआ दिल्ली का लाल किला।
ज्योति भाई की कलम ही बूंद को अपने सही अर्थ का आभाष कराने का साहस कर सकती है इस कविता ने अंदर तक भिगो दिया दिल निचोड़ कर रख दिया शायद मर्म की पराकाष्ठा इसी को कहते हैं !
अप्रतिम
khoobsoorat panktiyan.....
http://boseaparna.blogspot.in/
बूंद
तृप्त कर देती है अतृप्त प्यार
सींच देती है
अपनत्व का बगीचा------
बूंद
तुम्हारे कारण ही
धरती और जीवन में जिन्दा है हरियाली-----
वाह !!! बहुत ही सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है आपने भावों को ..
सादर
बूँद का सार्थक रुप..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!आभार
बहुत सुंदर रचना
देखकर धरती की सतह पर
संत्रास की लकीरों का जादू
कलह की छाती पर
रंगों का सम्मोहन
दरकते संबंधों में
लोक कलाकारी
दहशत में पनप रहे संस्कार----
क्या बात
बूंद
तृप्त कर देती है अतृप्त प्यार
सींच देती है
अपनत्व का बगीचा-
खूबसूरत अभिव्यक्ति
सादर
बूंद का अहसास।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत सुन्दर रचना.
सुन्दर प्रस्तुति
एक बूँद ही काफी है जीने के लिए ......मन को भीतर भिगो दिया बूँद ने .....
छोटी सी बूंद ..गागर में सागर
छोटी सी बूंद ..गागर में सागर
छोटी सी बूंद ..गागर में सागर
छोटी सी बूंद ..गागर में सागर
बढ़िया
आपने लिखा....हमने पढ़ा
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 19/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
क्यों कि बूंद
सहनशील होती
बूंद खामोश होती है---बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
तृप्त करती ..एक बूँद !!
सादर
अनु
बेहतरीन ......
सुन्दर रचना
बूंद
तृप्त कर देती है अतृप्त प्यार
सींच देती है
अपनत्व का बगीचा------
बूंद
तुम्हारे कारण ही
धरती और जीवन में जिन्दा है हरियाली
जीवन की दिशा बतलाती खुबसूरत पोस्ट वाह
बेहद खूब्शुरत भावों से संतृप्त प्रस्तुति बूंद तृप्त कर देती है अतृप्त प्यार सींच देती है अपनत्व का बगीचा------ बूंद तुम्हारे कारण ही धरती और जीवन में जिन्दा है हरियाली-----
बूंद
तुम्हारे कारण ही
धरती और जीवन में जिन्दा है हरियाली-----
सुंदर प्रस्तुति....
बहुत गहरे भाव छिपे हैं कविता में |बूद का प्रभाव किता अधिक है समझ में आता है |
"बूँद तृप्त कर देती है -----अपनत्व का बगीचा "
सुन्दर पंक्ति |
आशा
बूंद के माध्यम से जीवन और प्रकृति के सम्बन्ध को व्याख्यित करती रचना..
बूँद- बूँद से घट भरा, सागर भरा विशाल
इस नन्हीं सी बूँद ने,जग में किया कमाल ||
सुन्दर रचना के लिए बधाई ...
बूंद
तुम्हारे कारण ही
धरती और जीवन में जिन्दा है हरियाली-----bahut khoob .....
'सींच देती हैं अपनत्व का बागीचा..क्या बात कही है!बहुत खूब!
क्या खूब कहा है ...
वैसे इस बूँद में ही तो जीवन अमृत का संचयन है ...
देखकर धरती की सतह पर
संत्रास की लकीरों का जादू
कलह की छाती पर
रंगों का सम्मोहन
दरकते संबंधों में
लोक कलाकारी
दहशत में पनप रहे संस्कार----
waah adbhut ...!!
bahut sunder prastuti.....
anand
http://anandkriti007.blogspot.com
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