तोड़ डालो सारे भ्रम
कि तुम्हारी सुंदरता को
निहारता हूं
नजाकत को पढ़ता हूं
संत्रास हूं--
तराश कर रख ली है सूरत
ह्रदय में------
होंगे वो कोई और
जो रखते होंगे धड़कनों में तुम्हें
बहा आओ किसी नदी में
मिले हुए मुरझाऐ फूलों के संग
अपना रुतबा,घमंड
मैंने कभी नहीं रखा
अपनी धड़कनों में तुम्हें
धड़कनों का क्या
चाहे जब रुक जायेंगी
आत्मिक हूं---
आत्मा में बसा रखा है
जहां भी जाऊंगा संग ले जाऊंगा------
लिखो,लिखो कई बार लिखो
कि मुझसे करती हो नफरत
देती हो बददुआ
नफरतें प्रेम की कोख से ही जन्मती हैं
बांध लो अपने दुपट्टे में
मेरी भी यह दुआ------
जलाकर आ गया हूं
बूढ़े पीपल की छाती पर
एक माटी का दिया
सुना है
रात के तीसरे पहर
दो आत्माओं का मिलन होता है-------
"ज्योति खरे"
चित्र-- गूगल से साभार
टपक रही सुबह
कोहरे के संग
सूरज के टूट गए
सारे अनुबंध
कड़कड़ाते समय में
दौड़ रही
घड़ी-----
आलिंगन को आतुर
बर्फीली रातें
गर्माते होंठों से
जीवन की बातें
ना जाने की जिद पर
कपकपाती धुंध
अड़ी------
"ज्योति खरे"
चित्र--
गूगल से आभार
डूबते सूरज को
उठाकर ले आया हूं--
कि बाकी है
घुप्प अंधेरों के खिलाफ
लड़ना-
कि बाकी है
साजिशों की
काली चादर से ढकीं
बस्तियां की हर चौखट को
धूप सा चमकना-
कि बाकी है
उजली सलवार कमीज़ पहनकर
नंगों की नंगई को
चीरते निकल जाना-
कि बाकी है
काली करतूतों की
काली किताब का
ख़ाक होना-
कि बाकी है
धरती पर
सुनहरी किरणों से
सुनहरी व्याख्या लिखना-
कि कुछ बाकी ना रहे
सूरज दिलेरी से ऊगो
आगे बढ़ो
हम सब तुम्हारे साथ हैं-
इंकलाब जिन्दाबाद
इंकलाब जिन्दाबाद -----
"ज्योति खरे"
चित्र साभार--गूगल