डूबते सूरज को
उठाकर ले आया हूं--
कि बाकी है
घुप्प अंधेरों के खिलाफ
कि बाकी है
साजिशों की
काली चादर से ढकीं
साजिशों की
धूप सा चमकना-
कि बाकी है
उजली सलवार कमीज़ पहनकर
नंगों की नंगई को
चीरते निकल जाना-
कि बाकी है
काली करतूतों की
काली किताब का
ख़ाक होना-
कि बाकी है
धरती पर
सुनहरी किरणों से
सुनहरी व्याख्या लिखना-
कि कुछ बाकी ना रहे
सूरज दिलेरी से ऊगो
आगे बढ़ो
हम सब तुम्हारे साथ हैं-
इंकलाब जिन्दाबाद
इंकलाब जिन्दाबाद -----
"ज्योति खरे"
चित्र साभार--गूगल
20 टिप्पणियां:
सुन्दर.... नव् वर्ष कि हार्दिक शुभकामना
कि बाकी है
उजली सलवार कमीज़ पहनकर
नंगों की नंगई को
चीरते निकल जाना-
pataa nahin kab aisa sambhav ho sakega...
बाकी है बहुत कुछ...बाकी है सारा जीवन....
सुन्दर रचना
सादर
अनु
वाह ज्योतिजी !!!
बहुत सुंदर रचना....!!
उगते हुए सूरज के आशाओं से भरी सुंदर प्रस्तुति..
सुंदर !
बहुत ही बेहतरीन समसामयिक रचना..
बहुत सुन्दर...
http://mauryareena.blogspot.in/
:-)
आपने सच्चे मन से कामना की है, सूरज उगेगा जरूर उगेगा।
आप को नव वर्ष 2014 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ!
कल 05/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
कि कुछ बाकी ना रहे
सूरज दिलेरी से ऊगो
आगे बढ़ो
हम सब तुम्हारे साथ हैं-
इंकलाब जिन्दाबाद
इंकलाब जिन्दाबाद -----
आह्वाहन करते प्रेरक भाव. जाने क्यों आजकल सूरज अस्त ही रहना चाहता. शायद उसकी आग निस्तेज कर दी गई है जन्म से ही, जिसे सूरज अपनी तपन दिया करता था ताकि रोशनी पसरे. नई ताकत को जागना ही होगा...
इंकलाब की भावना अपने आप में उजाले की द्योतक है...
समसामयिक और सटीक भाव..... बहुत उम्दा
आभार आपका
आभार आपका
बहुत सुन्दर भाव ,बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
आभार आपका
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया, बहुत खूब लिखा है आपने, बधाई !... नव वर्ष की मंगलकामनाएं.
हिमकर श्याम
http://himkarshyam.blogspot.in
सुन्दर रचना ..
नव वर्ष मंगलमय हो, आभार के साथ !
जिन्दाबाद !
आदरणीय ,इस कविता को पढ़कर इंकलाब जिंदाबाद कहने को ही मन कर रहा है। तो इंकलाब जिंदाबाद।
एक टिप्पणी भेजें