डूब जाया करती थी मैं
बहुत गहरे तक
सहेजकर रखे मेरे खतों का
हिसाब-किताब करते समय
कहते थे
हिसाब-किताब करते समय
कहते थे
आज जब
यथार्थ की जमीन पर
ध्यान की मुद्रा में बैठती हूं तो यथार्थ की जमीन पर
प्रेम के गणित में
बहुत कमजोर थे अपन दोनों ----"ज्योति खरे"
चित्र- गूगल से साभार
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