दोपहर की महुआ वाली छांव
रातों के कुंवारे रतजगे
आंखों में तैरते सपने
जिन्हें पकड़ने
डूबते उतराते थे अपन दोनों -----
डूबते उतराते थे अपन दोनों -----
मैं भी बाँध लाऊंगा
एक दूसरे को दिये हुए वचन
कोचिंग की कच्ची कॉपी का
वह पन्ना
वह पन्ना
जिसमें
पहली बार लगायी
लिपिस्टिक लगे होंठों के निशान
आज भी
लिपिस्टिक लगे होंठों के निशान
आज भी
पवित्र और सुगंधित है-----
क्योंकि अब भी तुम
मेरे लिए शरद का चाँद हो------
क्योंकि अब भी तुम
मेरे लिए शरद का चाँद हो------
"ज्योति खरे"
चित्र- गूगल से साभार
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