सुबह होते ही
फेरती हो स्नेहमयी उंगलियाँ
उनींदी घास हो जाती है तरोताजा
गुनगुनाने की आवाज सुनते ही
निकलकर घोंसलों से
टहनियों पर पंख फटकारती
बैठ जाती हैं चिरैयां
बतियाने
मन ही मन मुस्कराती हैं
जूही,चमेली,रातरानी
नाचने लगती हैं
कांच के भीतर रखी
बेजान गुड़ियां भी
जलने को मचलने लगता है चूल्हा
जिसे तुम बचपन में
खरीद कर लायीं थी सावन के मेले से
पायलों की आहट सुनकर
सचेत हो जाता है आईना
वह जानता है
आईने के सामने ही खड़ी होकर
अपने होने के अस्तित्व को
सजते सवंरते स्वीकारती हो
तुम्हारे होने और तुम्हारे अस्तित्व के कारण ही
युद्ध तो आदिकाल से हो रहा है
जीत तो तुम्हारी ही होती है
ठीक वैसे ही , जैसे !!
काँटों के बीच से
रक्तिम आभा लिए
गुलाब की पंखुड़ियां निकलती हैं -------
बिटिया को जन्मदिन की स्नेह भरी शुभकामनाएं ----
" ज्योति सुनीता खरे "
9 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जीत तो तुम्हारी ही होती है
ठीक वैसे ही , जैसे !!
काँटों के बीच से
रक्तिम आभा लिए
गुलाब की पंखुड़ियां निकलती हैं -------सुंदर और अनुपम सृजन।
तुम्हारे होने और तुम्हारे अस्तित्व के कारण ही
युद्ध तो आदिकाल से हो रहा है..बहुत ही सारगर्भित और सटीक पंक्तियां,सुंदर अति सुंदर।
बहुत बढियां, भावनाओं से सराबोर सृजन
बहुत सुंदर। जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएँ!!!
आदरणीय सर, आपने अपनी बेटीकेमाध्यम से संसार की समस्त बेटियों के प्रति एक अनूठी रचना लिखी है। बेटियों का बाबुल के आंगन में होना बेजान आंगन का स्पंदन है। उसकी पायल की रुनझुन सृष्टि का मधुरतम संगीत। उसकी उड़ान गौरैया सरीखी और महक गुलाब सी मधुर और सरस है। इक मधुर रचना जो बेटी की महिमा में चार चांद लगाती है। सादर शुभकामनाए 🙏🌷🌷💐
बहुत भाव प्रवण रचना । बेटी के जन्मदिन पर आपके शब्द हमेशा बिटिया का संबल बने रहेंगे । सुंदर सृजन
जीत तो तुम्हारी ही होती है
ठीक वैसे ही , जैसे !!
काँटों के बीच से
रक्तिम आभा लिए
गुलाब की पंखुड़ियां निकलती हैं -------
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण सृजन।
जीत तो तुम्हारी ही होती है
ठीक वैसे ही , जैसे !!
काँटों के बीच से
रक्तिम आभा लिए
गुलाब की पंखुड़ियां निकलती हैं -------
संसार की सभी बेटियों को समर्पित है ये आपकी लाजबाब सृजन,सादर नमन सर
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