शनिवार, अक्टूबर 28, 2017

कागज में लिखा चाँद

कुछ कागज में लिखी स्मृतियाँ
कुछ में सपने
कुछ में सुख
कुछ में दुख
कुछ में लिखा चाँद

चांद रोटियों की शक्ल में ढल गया
भूख और पेट की बहस में
सपनो की सरसराती आवाजें
जंग लगे आटे के कनस्तर में समा गयीं

तुम्हारे खामोश शब्द
समुंदर की लहरों जैसा कांपते रहे
और मैं
प्रेम को बसाने की जिद में
बनाता रहा मिट्टी का घरोंदा

एक दिन तुम
शर्मीली ठंड में
अपने दुपट्टे में बांधकर जहरीला वातावरण
उतर आयी थी
मेरी खपरीली छत पर
चाँद बनकर ---

# ज्योति खरे

गुरुवार, अक्टूबर 05, 2017

शरद का चांद

शरद का चांद
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वर्षों से सम्हाले
प्रेम के खुरदुरेपन को
खरोंच डाला है
सपनों ने
दीवाल पर चिपका रखी हैं
खींचकर अनगिनत फ़ोटो
चांद की
और चांद है कि
आसमान से उतरकर
खरगोश की तरह
उचक रहा है इधर उधर

फक्क सुफेद चांद
जब भी उछलकर
तुम्हारी गोद में गया
तुमने झिड़क दिया

मैं हमेशा जमीन पर
उचकते खरगोश को सहलाता रहा
खरोंच और चोट से बचाता रहा
और समझाता रहा तुम्हें
यह खरगोश प्रेम का प्रतीक है
तुम नकारती रही
तुम्हें तो बस आसमान वाला
चांद चाहिए

कभी
जमीन पर रहने वाले चांद को
गोद में बैठाकर
प्रेम से
उसकी देह पर
उंगलियां तो फेरो

शरद का चांद
प्रेम में तरबतर हो जाएगा
तुम्हारे आँचल में
सदैव खिला रहेगा -----

"ज्योति खरे"