अनुबंधों का रूप तुम्हारा
रात नहीं सोता होगा
प्राणों के हर दरवाजे पर
मेरे मन का तोता होगा-------
आँखों का परिचय सब
आँगन देहरी बांध गया
पकड़े अहसासों की उंगली
मरुथल पूरा लांघ गया
नदी किनारे बैठकर
प्यासा पंछी रोता होगा------
प्रतिबिम्बों के लिये विनत हो
छत से उतर गया
नाखूनों के पॊर सामने
दर्पण कुतर गया
सांस हारती बाजी कैसे
तह वाला गोता होगा-------
"ज्योति खरे"
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