बुधवार, अप्रैल 10, 2019

ठूंठ पेड़ से क्या मांगे

बरगद जैसे फैले
बरसों जीते
चन्दन रहते
और विष पीते --

मौसम गहनों जैसा
करता मक्कारी
पूरे जंगल की बनी
परसी तरकारी
नंगे मन का भेष धरें
जीवन जीते----

उपहार मिला गुच्छा
चमकीले कांटों का
वार नहीं सहता मन
फूलों के चांटों का
हरियाली को चरते
शहरी चीते----

ठूंठ पेड़ से क्या मांगे
दे दो मुझको छाँव
दिनभर घूमें प्यासे
कहाँ चलाये नांव
नर्मदा के तट पर
धतूरा पीते-----

"ज्योति खरे"

13 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

बहुत सुंदर भाव
ब्लॉग कलेवर के क्या कहने

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बरगद जैसे फैले
बरसों जीते
चन्दन रहते
और विष पीते --

वाह।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-04-2019) को "फिर से चौकीदार" (चर्चा अंक-3303) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत सुन्दर आदरणीय
सादर

शिवम् मिश्रा ने कहा…


ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 11/04/2019 की बुलेटिन, " लाइफ सेट करने वाला मंत्र - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Sudha Devrani ने कहा…

उपहार मिला गुच्छा
चमकीले कांटों का
वार नहीं सहता मन
फूलों के चांटों का
हरियाली को चरते
शहरी चीते----
बहुत सुन्दर सार्थक एवं सारगर्भित रचना...
वाह!!!

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

संजय भास्‍कर ने कहा…

बरगद जैसे फैले
बरसों जीते
चन्दन रहते
बहुत ही सुन्दर भावों को अपने में समेटे शानदार कविता.